न्यू यॉर्क - किशोर होते बच्चों के साथ पॉर्नोग्रफी को
लेकर खुलकर बातचीत उन्हें पोर्न की लत से बचा सकती है। एक रिसर्च में यह भी
पता चला है कि किशोर होते बच्चों के साथ खुलकर बातचीत करने से वयस्क जीवन
के प्रति उन्हें सशक्त बनाने में मदद करता है।
ऐसा किए जाने से उनमें आत्मविश्वास बढ़ता है और उन्हें हमउम्र बच्चों के सामने आत्मविश्ववास खोने से बचाता है। रिसर्चर्स के अनुसार, 'पॉर्नोग्रफी के नकारात्मक प्रभावों के बारे में बच्चों से बात करने से उनका आत्मविश्वास बढ़ता है, जो वयस्क होने पर किसी के साथ रिश्ते में होना उनके आत्मबल को नुकसान पहुंचाने से बचाता है।'
लुबॉक स्थित टेक्सस टेक यूनिवर्सिटी ने अपने अध्ययन में पाया कि जो पैरंट्स नियमित रूप से अपने बच्चों के साथ पॉर्नोग्रफी के नकारात्मक प्रभावों के बारे में चर्चा करते हैं, उनके बच्चे बड़े होने पर पॉर्नोग्रफी में दिलचस्पी नहीं रखते।
असिस्टेंट प्रफेसर एरिक रैसम्युसेन के अनुसार ये खुलासे दिलचस्प हैं, क्योंकि कई अध्ययनों में यह बात सामने आ चुकी है कि वैवाहिक या प्रेम संबंधों में यदि साथी को पॉर्नोग्रफी की लत हो, तो यह दूसरे के लिए खासकर महिलाओं के लिए नुकसानदेह और सदमे जैसा होता है।
उन्होंने कहा कि अभिभावकों को अपने बच्चों से पॉर्नोग्रफी के बारे में खुलकर बातचीत करनी चाहिए। यह शोध जर्नल चिल्ड्रन ऐंड मीडिया में प्रकाशित हुई है।
ऐसा किए जाने से उनमें आत्मविश्वास बढ़ता है और उन्हें हमउम्र बच्चों के सामने आत्मविश्ववास खोने से बचाता है। रिसर्चर्स के अनुसार, 'पॉर्नोग्रफी के नकारात्मक प्रभावों के बारे में बच्चों से बात करने से उनका आत्मविश्वास बढ़ता है, जो वयस्क होने पर किसी के साथ रिश्ते में होना उनके आत्मबल को नुकसान पहुंचाने से बचाता है।'
लुबॉक स्थित टेक्सस टेक यूनिवर्सिटी ने अपने अध्ययन में पाया कि जो पैरंट्स नियमित रूप से अपने बच्चों के साथ पॉर्नोग्रफी के नकारात्मक प्रभावों के बारे में चर्चा करते हैं, उनके बच्चे बड़े होने पर पॉर्नोग्रफी में दिलचस्पी नहीं रखते।
असिस्टेंट प्रफेसर एरिक रैसम्युसेन के अनुसार ये खुलासे दिलचस्प हैं, क्योंकि कई अध्ययनों में यह बात सामने आ चुकी है कि वैवाहिक या प्रेम संबंधों में यदि साथी को पॉर्नोग्रफी की लत हो, तो यह दूसरे के लिए खासकर महिलाओं के लिए नुकसानदेह और सदमे जैसा होता है।
उन्होंने कहा कि अभिभावकों को अपने बच्चों से पॉर्नोग्रफी के बारे में खुलकर बातचीत करनी चाहिए। यह शोध जर्नल चिल्ड्रन ऐंड मीडिया में प्रकाशित हुई है।